हल्द्वानी रेलवे जमीन प्रकरण के जरिये बनभूलपुरा प्रदेश में चर्चा केंद्र बन गया है। इस मामले में दस दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। बनभूलपुरा ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट की ओर हैं। उम्मीद और आशंकाओं के बीच कोर्ट इस मामले में क्या फैसला सुनाती है इस पर हर कोई कयास लगा रहा है। इस सबके बीच अमर उजाला ने याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी और दूसरे पक्ष के अब्दुल मतीन सिद्दीकी से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के अंश।
पहले 29 एकड़ फिर 80 एकड़ जमीन बताई गई : मतीन
प्रश्न : रेलवे जमीन पर अतिक्रमण का मामला कब सामने आया था?
2006 में हाईकोर्ट बार के एक पीआईएल से यह मुद्दा सामने आया था। हाईकोर्ट के आदेश पर उस समय 10 एकड़ जमीन कब्जा मुक्त हुई थी। सब कुछ जल्दबाजी में किया गया। मैंने समिति के जरिये वाद दाखिल किया और स्टे मिला।
प्रश्न : जो लोग यहां बसे हैं क्या उनके पास कोई कागज हैं। इनकी संख्या कितनी है?
शहर में नजूल की भूमि पर यही इलाका नहीं अन्य क्षेत्र भी हैं। कोई 40 साल तो कोई 100 साल से बनभूलपुरा में बसा है। वर्तमान में इस प्रकरण से तकरीबन 40 से 50 हजार लोग जुड़े हैं। कोर्ट में हमनें अपना पक्ष बेहतर तथ्यों के साथ रखा है। 10 दिसंबर को फाइनल प्रोसिडिंग है। सुप्रीम कोर्ट आने वाले समय में इस प्रकरण में जो भी फैसला सुनाएगा वह स्वीकार है। मामला कोर्ट में है। ऐसे में इस विषय पर ज्यादा कुछ कहना उचित नहीं होगा।
प्रश्न : इसमें तो किसी और ने भी पीआईएल दाखिल की है। वह मामला क्या है?
वर्ष 2016 में एक और पीआईएल दाखिल हुई। इसमें गौलापुल के नीचे अवैध खनन और इसे करने वाले लोगों को ट्रैक के आसपास रहने वाला बताया गया। इसी दौरान रेलवे ने एक से डेढ़ हजार लोगों को जमीन खाली करने का नोटिस जारी किया। यह सभी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट गए। फिर रेलवे ने नोटिस का दायरा बढ़ाते हुए 4365 मकान को अवैध मानते हुए फिर नोटिस दिया। पहले 29 एकड़ फिर 80 एकड़ जमीन बताई गई।
प्रश्न : तीन साल पहले हाईकोर्ट ने भी तो अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था?
जब रेलवे ने 4365 को नोटिस दिया तो पीआईएल पर 20 दिसंबर 2022 को कोर्ट ने सभी निर्माण को हटाने का आदेश दिया था। तब 11 याचिकाएं हाईकोर्ट में डाली गई। दो जनवरी 2023 को कोर्ट ने इस पर स्टे दिया। बीच-बीच में तारीख पड़ती रही।
सियासी संरक्षण में ही फला-फूला अतिक्रमण : रविशंकर
प्रश्न : क्या अतिक्रमण के पीछे सियासी कारण जिम्मेदार रहे हैं?
सियासी संरक्षण में ही यह अतिक्रमण फलता फूलता रहा है। बनभूलपुरा के अतिक्रमणकारियों को किसका खुला संरक्षण रहा है यह किसी से छुपा नहीं है। एक पार्टी के लोगों का निहित स्वार्थ आज विकास में बाधक बना हुआ है।
प्रश्न : रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटना चाहिए, यह विचार कब और कैसे आया?
मैं गौलापार का रहने वाला हूं। शहर में आने जाने के लिए हम बचपन से ही बनभूलपुरा के रास्ते का उपयोग करते रहे हैं। मैंने अपनी आंखों से इस अतिक्रमण को पहले समस्या, फिर नासूर और फिर कैंसर बनते हुए देखा है। 2007 में अखबारों में पढ़ा कि कुमाऊं के यात्रियों के लिए कई नई ट्रेनें शुरू होनी हैं लेकिन वह लालकुआं से चलेंगी, क्योंकि हल्द्वानी में पर्याप्त भूमि नहीं है। तभी विचार आया कि इस अतिक्रमण को हटवाना चाहिए।
प्रश्न : क्या कभी ऐसा नहीं लगा कि यहां काबिज लोग आपके विरोधी हो जाएंगे?
पीआईएल दायर करते वक्त ही यह सब बातें दिमाग में आने लगी थी लेकिन मैंने इन बातों को तवज्जो नहीं दी। हमेशा एक खतरे को लेकर जीता हूं। इस मामले में कभी किसी ने मुंह नहीं खोला। लोगों के इसी डर के कारण आज एक छोटी सी समस्या ने विकराल रूप ले लिया। यदि शुरू में लोगों ने आवाज उठाई होती तो आज यह हाल नहीं होता।
प्रश्न : अब सुप्रीम कोर्ट में दस दिसंबर को सुनवाई होनी है। क्या उम्मीद करते हैं?
अतिक्रमण एक अपराध है और इसका संरक्षण नहीं किया जा सकता है। कोर्ट का जो भी फैसला आएगा वह नजीर बनेगा और सभी को स्वीकार्य होगा। मुझे नहीं लगता है कि कोर्ट अतिक्रमणकारियों के पुनर्वास जैसा कोई आदेश देगी क्योंकि पुनर्वास करना अतिक्रमणकारियों को संरक्षण देना है।
