
Holi: कुछ दिनों बाद भारत के कोने कोने में रंगों की फुहार नज़र आएगी। मस्ती हुड़दंग और जोश से भरी होली भारत की सबसे ख़ास पहचान है। लेकिन क्या आप इसके बारे में पूरा जानते हैं ? होली का त्योहार भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, जो उल्लास, खुशी और रंगों के पर्व के रूप में मनाया जाता है. यह दिन न केवल रंगों के खेल के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह एक-दूसरे से गले मिलने, बुरा-भला भूलने और प्रेम तथा भाईचारे का संदेश देने का अवसर भी है. जब होली के रंगों की बात होती है, तो हम अक्सर यह नहीं सोचते कि इस त्योहार पर रंग खेलने की कहानी और प्राचीन समय से आधुनिक युग तक रंगों का इतिहास क्या है ?
भारत में रंगों का इतिहास है बेहद पुराना Holi
रंगों का इतिहास बहुत पुराना है. प्राचीन भारत में रंगों का इस्तेमाल केवल सौंदर्य और खुशी के लिए नहीं किया जाता था, बल्कि आयुर्वेद और उपचार में भी उनका अहम स्थान था. इन रंगों का शरीर और मन पर गहरा प्रभाव माना जाता था. जैसे लाल रंग ऊर्जा और उत्तेजना का प्रतीक था, नीला रंग शांति और संतुलन का, हरा रंग ताजगी और हरियाली का, और पीला रंग खुशी और मानसिक शांति का प्रतीक था. ये सब रंग भारतीय जीवन का हिस्सा रहे हैं, और इनका उपयोग न केवल त्योहारों में, बल्कि चिकित्सा और मानसिक उपचार में भी किया जाता था.
प्राचीन काल में भारतीय सभ्यता में रंगों का इस्तेमाल धार्मिक, सांस्कृतिक और चिकित्सा उद्देश्यों के लिए किया जाता था. वेदों और महाकाव्यों में रंगों का उल्लेख मिलता है, जिसमें इनका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व था. उस समय रंग प्राकृतिक तत्वों से बनाए जाते थे – जैसे हल्दी से पीला, चुकंदर से लाल, फूलों से गुलाबी और नीम के पत्तों से हरा रंग. इन रंगों का उपयोग न केवल सौंदर्य के लिए, बल्कि त्वचा के उपचार के लिए भी किया जाता था. हल्दी का पीला रंग त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता था, जबकि चुकंदर से बना लाल रंग रक्त को शुद्ध करने में मदद करता था. इन रंगों का एक और फायदा था कि ये त्वचा के लिए भी सुरक्षित होते थे और शरीर के लिए लाभकारी थे.
मध्यकाल में भाईचारे का प्रतीक बने रंग
मध्यकाल में रंगों का महत्व और बढ़ गया. इस समय में Holi जैसे त्योहारों के दौरान रंगों का उपयोग बड़े धूमधाम से किया जाने लगा. रंगों का उद्देश्य केवल सौंदर्य नहीं था, बल्कि यह सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक बन गया था. होली के दिन लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को रंग डालते थे, जिससे रिश्तों में सुधार और नयापन आता था. उस समय भी रंग प्राकृतिक ही होते थे, क्योंकि रासायनिक रंगों का विकास नहीं हुआ था. होली के रंगों के पीछे एक मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का पहलू भी था. हर रंग का विशेष उपचारात्मक और मानसिक प्रभाव था.