
Indresh Hospital श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में इलाज़ के लिए पहुंची देहरादून की पैंसठ वर्षीय महिला मरीज़ के पैरों में भारी सूजन और असहनीय दर्द की शिकायत थी। पैर और फेफड़ों में खून के थक्के होने की वजह से उनका चलना फिरना मुश्किल हो गया था। मेडिकल साइंस में इस समस्या को डीप वेन थ्रॉम्बोसिस और पल्मोनरी एंबोलिज्म कहा जाता है।श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के प्रमुख इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट एवम् कैथ लैब डायरेक्टर डॉक्टर तनुज भाटिया ने महिला मरीज़ का आधुनिक तकनीक से सफल उपचार कर उन्हें नया जीवन दिया ।
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डॉक्टर्स का कहना था कि यदि इस समस्या का समय पर इलाज न किया जाता, तो यह थक्का फेफड़ों तक पहुंच सकता था और पल्मोनरी एंबोलिज्म की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती थी, जिससे मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। डॉक्टर भाटिया ने मरीज के घुटने के नीचे एक छोटा सा चीरा लगाया और उस छोटे से छेद के माध्यम से कैथेटर डालकर पैर से भारी मात्रा में खून का थक्का निकाल दिया। इस डिवाइस में कंप्यूटर असिस्टेड वैक्यूम थ्रॉम्बेक्टॉमी तकनीक है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के समान कार्य करती है। इस कैथेटर में लगे सेंसर रक्त और थक्के में अंतर कर सकते हैं। इस तकनीक की मदद से डॉक्टर भाटिया ने बेहद कम रक्तस्राव के साथ मरीज के पैर से खून के थक्के हटा दिए। पूरी प्रक्रिया सिर्फ 15 मिनट में पूरी हो गई।
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पैन्म्ब्रा लाइटिंग फ्लैश सिस्टम तकनीक का मेडिकल साइंस में मिली बड़ी उपलब्धि
यह प्रक्रिया स्थानीय एनेस्थीसिया के तहत की गई, जिससे मरीज को तुरंत आराम मिला। उनके पैर की सूजन और दर्द कम हो गया। उन्हें सिर्फ एक दिन निगरानी के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इस सफल उपचार के कारण फेफड़ों में थक्का जाने की आशंका समाप्त हो गई, जिससे हृदय की विफलता और संभावित मृत्यु का खतरा टल गया। पूरे इलाज़ के बाद महिला स्वस्थ है और उन्हें नया जीवन देकर अपने मरीज़ को एक बार फिर इंद्रेश अस्पताल ने संजीवनी दी है।