Madmaheshwar Dham द्वितीय केदार श्री मद्महेश्वर जी के कपाट प्रातः आठ बजे मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी स्वाति नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में शीतकाल के लिए बंद हो गए। इस अवसर पर काफी संख्या में श्रद्धालु, बीकेटीसी कर्मचारी-अधिकारी, विभिन्न विभागों और प्रशासन के अधिकारी उपस्थित रहे। कपाट बंद होने की प्रक्रिया के अंतर्गत मंगलवार को ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर खुला। पूजा-अर्चना अर्चना के बाद सात बजे से कपाट बंद की प्रक्रिया शुरू हो गई।
इसके पश्चात पुजारी ने बीकेटीसी मुख्य कार्याधिकारी/कार्यपालक मजिस्ट्रेट विजय प्रसाद थपलियाल, बीकेटीसी सदस्य प्रह्लाद पुष्पवान एवं पंच गौंडारी हकहकूकधारियों की उपस्थिति में श्री मद्महेश्वर जी के स्वयंभू शिवलिंग को समाधि रूप दिया और स्थानीय पुष्पों एवं राख से ढंका। इसके बाद मंदिर के कपाट श्री मद्महेश्वर जी के जय घोष के साथ बंद कर दिए गए।कपाट बंद होने के बाद श्री मद्महेश्वर जी की चल विग्रह डोली ने अपने भंडार का निरीक्षण किया। इसके बाद, मंदिर की परिक्रमा करते हुए ढोल-दमाऊं के साथ प्रथम पड़ाव गौंडार के लिए प्रस्थान कर दिया।
बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ के अनुसार-19 नवंबर बुधवार को भगवान मद्महेश्वर जी की चल विग्रह उत्सव डोली राकेश्वरी मंदिर रांसी तथा 20 नवंबर गुरुवार को गिरिया प्रवास करेगी। 21 नवंबर शुक्रवार को चल विग्रह डोली शीतकालीन गद्दीस्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचेगी। श्री मद्महेश्वर जी की चल विग्रह डोली के स्वागत हेतु श्री ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में तैयारियां शुरू हो गई हैं। 20 नवंबर से तीन दिवसीय मद्महेश्वर मेला भी शुरू हो रहा है।बीकेटीसी के सीईओ ने बताया कि द्वितीय केदार मद्महेश्वर में विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बीच इस यात्रा वर्ष में बाइस हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन किये।
पंच केदारों में खास है भगवान मद्महेश्वर का धाम
पंच केदार में से मध्यमहेश्वर(मध्यो बाबा) जी का मंदिर ‘द्वितीय केदार’ के रूप में जाना जाता है और इसे शक्ति का केंद्र बिंदु मानते हैं। 3,497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मद्महेश्वर धाम रुद्रप्रयाग जनपद के ऊखीमठ विकास खंड में स्थित है. मद्महेश्वर पहुंचने के लिए श्रद्वालुओं को करीब 14 किमी की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है. पंच केदारों में से एक द्वितीय केदार के रूप में मद्महेश्वर धाम की मान्यता है. यहां भगवन शिव के नाभि रूप की पूजा होती है. इस मंदिर की अनेक पौराणिक मान्यताएं हैं, मान्यता है कि इस भव्य मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा स्वर्गारोहण के समय किया गया था।
