pahadi food इजरायल की आफरा के सर पर उत्तराखंडी टोपी चमक रही है। थाली पर पहाड़ी भोज्य पदार्थ हैं। मंडुवे की रोटी, उसके साथ घर का बना मक्खन, झंगोरे की खीर और गहत की दाल। आफरा हर एक पहाड़ी भोज्य पदार्थ का स्वाद ले रही हैं। पहली प्रतिक्रिया पूछी गई, तो बोलीं-मंडुवा, झंगोरा वैरी टेस्टी
डेलीगेट्स बोले-पहाड़ी भोजन में स्वाद व पौष्टिकता दोनों pahadi food
युद्ध के दौर से गुजर रहे देश इजरायल से खास वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस के लिए आफरा भारत आई हैं। खाने की टेबल पर अपने सहयोगी भगवान स्वरूप वर्मा के साथ बैठी आफरा पूरे आयोजन से संतुष्ट हैं। खाने की खास तारीफ करती हैं। वो भी पहाड़ी भोजन की। कहती हैं-मिलेट्स के फायदे पूरी दुनिया समझ रही है। टूटी-फूटी हिंदी में कहती हैं-पहाड़ी खाने में टेस्ट भी है और ये पौष्टिक भी हैं।
हर दिन मैन्यू के अनुसार ही परोसा जाएगा पहाड़ी भोजन
आफरा के साथ इजरायल से आए भगवान स्वरूप वर्मा 35 वर्ष से वहां रहकर आयुर्वेद के प्रचार के लिए काम कर रहे हैं। मूल रूप से आगरा के हैं। कहते हैं-पहाड़ी खाना पहले भी खाया है, लेकिन बार-बार खाने का मन करता है। कानपुर से आए वैद्य पंकज कुमार सिंह ने पहली बार देहरादून में पहाड़ी भोज्य पदार्थ खाया, लेकिन वह इसके मुरीद हो गए हैं। बकौल, पंकज कुमार सिंह-सुना काफी था इस खाने के बारे में, आज खाया, तो अच्छा लगा।
उड़ीसा से आए प्रो ब्रहानंदा महापात्रा रिटायर्ड प्राचार्य हैं। उन्होंने पहले भी यह खाना खाया है। उन्हें हमेशा से पहाड़ी खाना पसंद रहा है। इसकी वजह वह ये ही मानते हैं कि ये बहुत पौष्टिक होता है। वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस में भाग लेने के लिए लखनऊ से आए डा जयप्रकाश पांडेय रिटायर्ड आयुर्वेदिक अधिकारी हैं। उनका उत्तराखंड से पुराना नाता रहा है। यूपी के जमाने में वह टिहरी में तैनात रहे हैं। अपने अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा-वह अपनी सेवाकाल के दौरान चंबा का राजमा अपने घर लखनऊ ले जाया करते थे, जिसे सभी बहुत पसंद किया करते थे।