
ब्यूरो रिपोर्ट, 6 मार्च: Village of Son-in-Law: महिला सशक्तिकरण के कई उदाहरण आपने पढ़े और देखे होंगे, लेकिन कौशांबी के करारीनगर का पुरवा गांव कई मायनों में सामाजिक दायरों को तोड़ने वाला है। ये दामादों का गांव(Village of Son-in-Law) है। चौंक गए न… लेकिन यही हकीकत है। परंपरा कहिए.. या महिलाओं की शक्ति। शादी के बाद पतियों के यहां आकर बसने की रवायत ऐसी चली कि अब 400 परिवारों की यही कहानी है। शादी होने के बाद बेटों को ब्याह कर बेटियां यहां पूरा परिवार चला रही हैं।
गांव में महिलाओं को पुरुषों के बराबर ही अधिकार मिले हुए हैं।
इस गांव(Village of Son-in-Law) में रहने वाले अधिकांश लोग ऐसे हैं जो बाहरी है, जिन्होंने शादी के बाद से ही गांव में डेरा जमा लिया। ससुराल के बंधनों से आजाद यहां विवाहिता पति के साथ बराबरी से रहकर हर तरह से उसकी मदद करती हैं। इस गांव में रहने वाले पुरुषों के साथ ही गांव की महिलाएं भी परिवार चलाने में पति की मदद करती है जिसके लिए वह घर में बीड़ी बनाने के काम को करती है। इससे होने वाली आय को वह परिवार के भरण पोषण में खर्च करती है। यह सिलसिला गांव में लिए नया नहीं है। दशकों से दामादों ने यहां परिवार बसा रखा है। इस गांव में 70 साल से लेकर 25 साल की आयु वर्ग के दामाद परिवार के साथ खुशी-खुशी रहते हैं।
गांव(Village of Son-in-Law) की विशेषता ये है कि बेटियों को बेटों के बराबर शिक्षा व अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। इस गांव में बेटियां हर वो काम करती हैं, जो बेटे कर सकते हैं। इन पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। 20 साल पहले पति के साथ गांव में रहने के लिए आई यासमीन बेगम की मानें तो ससुराल में कितनी भी आजादी हो, लेकिन ससुराल में कुछ न कुछ बंधन तो होता ही है। यहां पति के साथ रहते हुए वह अपनी मर्जी से रोजगार भी कर पा रही हैं।अब तक करीब 40 दामाद यहां रह रहे हैं, इसीलिए इसका नाम दमादन का पुरवा रखा गया। हालांकि परिवार की मुखिया बेटियां ही हैं। यहां परिवार की महिलाएं बीड़ी बनाने और पुरुष मजदूरी करते हैं। यह गांव अब नगर पंचायत करारी का हिस्सा है।