
रायबरेलीः UP Biggest Well: आज हम आपको बताने जा रहे एक ऐसे कुएं के बारे में जो किसी मैदान जैसा नजर आता है. दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि इस कुएं की बराबरी एशिया को कोई दूसरा कुआं नहीं कर सकता है. हालांकि इसके कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं है. इस कुएं के क्षेत्रफल में एक हवेली तक समां सकती है. मैदान जैसा दिखने वाला कुआं रायबरेली में है. यह कुआं(UP Biggest Well) पुरात्व के लिए बड़ी धरोहर है.
क्या है इतिहास: चंदापुर रियासत के उत्तराधिकारी राजा हर्शेन्द्र सिंह बताते हैं कि डलमऊ क्षेत्र रायबरेली के साथ-साथ अवध क्षेत्र का एक बहुत बड़ा व्यापारिक केंद्र हुआ करता था. करीब 600 साल पहले वर्ष 1404 में जौनपुर के मुस्लिम शासक इब्राहिम शाह शर्की ने अचानक यहां पर आक्रमण कर दिया. काफी कड़े युद्ध के बाद राजा डलदेव शर्की से परास्त हो गए. शर्की ने डलमऊ पर कब्जा कर लिया. उन्होंने रायबरेली में किले का निर्माण कराया. यहां बड़ी तादाद में उसके सैनिक रहते थे.
ऐसे हुआ कुआं का निर्माण: शाह की सेना को पीने के पानी की समस्या होने लगी तो एक बड़े कुएं का निर्माण कराया गया. यह 16 गज व्यास का था. उसमें 8 गरारियां लगाई गई थी. इससे पानी भरा जाता था. उन्होंने कहा कि इस संपूर्ण घटना का उल्लेख वरिष्ठ साहित्यकार अमृत लाल नगर ने अपनी किताब गदर के फूल में किया गया है. उसमें इस कुएं का जिक्र किया गया है. उस दौर में यह कुआं(UP Biggest Well) सबसे बड़ा हुआ करता था.
जब कुएं से निकली समुद्र में खोई छड़ीः राजा हर्शेन्द्र सिंह बताते हैं कि एक साधु उस समय हुआ करते थे. वह समुद्र में यात्रा कर रहे थे. उनकी समुद्र में छड़ी गिर गई थी जो एक कुप्पी के शेप में थी. इसमें उन्होंने तीन अशरफिया रखी थीं. एक दिन इस कुएं का पानी बाहर निकला तो उससे वह छड़ी भी बाहर निकल आई. इसके बाद उस छड़ी को रायबरेली किले के गेट पर टांग दिया गया. सूचना दी गई कि जिस किसी की भी छड़ी हो वो इसे हासिल कर सकता है, इसके लिए प्रमाण देना होगा. संयोग से वह साधु आए और उन्होंने अपनी छड़ी को पहचान लिया और बताया कि इसमें तीन अशरफियां है. जांच में उनकी बात सही साबित हुई और उन्हें छड़ी दे दी गई. इसके बाद से ही इस कुएं के समुद्र से कनेक्शन की बात सामने आई.
अब क्या स्थिति हैः ऐतिहासिक बड़े कुएं की हालत अब बेहद खराब है. यहां कुएं में जगह-जगह कूड़ा और मलबा भरा हुआ है. इतने बड़े कुएं पर न तो पुरात्व विभाग या फिर न हीं किसी जनप्रतिनिधि का ध्यान गया है. इलाकाई लोग इस कुएं को लगातार कूड़े से पाट रहे हैं. वहीं, कुछ लोग इस कुएं का पुराना स्वरूप फिर से वापस लाना चाहते हैं. वह चाहते हैं कि जनप्रतिनिधि व जिला प्रशासन और संस्कृति मंत्रालय सक्रिय होकर ऐसी चीजों का उद्धार व संरक्षण करें.
जिलाधिकारी के साथ बड़ा कुंआ का निरीक्षण किया था. तब यह बात हुई कि इसके संरक्षण के लिये संस्कृति मंत्रालय को पत्र लिखा जाएगा. नगर पालिका इसकी सफाई भी कराएगी. – शत्रोहन सोनकर, नगर पालिका अध्यक्ष