
Maharani Karnavati इतिहास में गढवाल की रानी का उल्लेख ‘नक कट्टी राणी’ यानी नाक काटने वाली रानी के नाम से मिलता है। गढ़वाल की इस रानी ने पूरी मुगल सेना की सचमुच नाक कटवायी थी। कई इतिहासकारों ने इस रानी का उल्लेख नाक काटने वाली रानी के रूप में किया है।गढ़वाल की रानी कर्णावती ने गढ़वाल में अपने नाबालिग बेटे पृथ्वीपतिशाह के बदले उस समय शासन की बागडोर खुद संभाल ली थी, जब दिल्ली में मुगल सम्राट शाहजहां का साम्राज्य फलफूल रहा था। शाहजहां के कार्यकाल पर बादशाहनामा या पादशाहनामा लिखने वाले अब्दुल हमीद लाहौरी ने भी गढ़वाल की इस रानी का जिक्र किया है। शम्सुद्दौला खान ने ‘मासिर अल उमरा’ में गढ़वाल की रानी कर्णावती का उल्लेख किया है।
गढ़वाल की ‘नक कट्टी रानी’ – जितनी सुन्दर उतनी चतुर Maharani Karnavati

ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि रिखोला लोदी और माधोसिंह जैसे सेनापतियों की मौत के बाद महिपतशाह कमजोर पड़ गए और कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गयी। महिपतशाह की मृत्यु के पश्चात उनकी विधवा रानी कर्णावती ने सत्ता संभाली। उनके पुत्र पृथ्वीपतिशाह तब केवल सात साल के थे। इसलिए अगले कुछ वर्षों तक रानी कर्णावती ने एक संरक्षिका शासिका के रूप में शासन संभाला। कर्णावती एक विदूषी महिला होने के साथ साथ निर्भीक एवं पराक्रमी भी थी। इसी लिए अपने पुत्र के नाबालिग होने के कारण वह गढवाल रियासत के हित के लिए अपने पति की मृत्यु पर सती नहीं हुईं और बडे धैर्य और साहस के साथ उन्होंने पृथ्वीपति शाह के संरक्षक के रूप में राजसत्ता संभाली।

जब महिपतिशाह गढ़वाल के राजा थे तब 14 फरवरी 1628 को शाहजहां का राज्याभिषेक हुआ था। जब वह गद्दी पर बैठे तो देश के तमाम राजा आगरा पहुंचे थे। महिपतिशाह आगरा नहीं गये। इसके दो कारण माने जाते हैं। पहला यह कि पहाड़ से आगरा तक जाना तब आसान नहीं था और दूसरा उन्हें मुगल शासन की अधीनता स्वीकार नहीं थी। कहा जाता है कि शाहजहां इससे नाराज हो गया। मुगल शासकों को गुप्तचरों ने यह भी बताया था कि गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर में सोने की खदानें हैं। महीपति शाह के शासनकाल में मुगल सेना गढवाल विजय के बारे में सोचती भी नहीं थी, लेकिन जब वह युध्द में मारे गए और रानी कर्णावती ने गढवाल का शासन संभाला तब मुगल शासकों को गढ़वाल की ओर बढ़ने का अच्छा मौका मिल गया और वो 1635 में एक विशाल सेना लेकर आक्रमण के लिये निकल पड़ा। उसके साथ पैदल सैनिकों के अलावा घुडसवार सैनिक भी मौजूद थे ।

रानी कर्णावती सैन्यबल में मुगलों से कमजोर थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में रानी कर्णावती ने सीधा मुकाबला करने के बजाय कूटनीति से काम लेना उचित समझा। गढ़वाल की रानी कर्णावती ने उन्हें अपनी सीमा में घुसने दिया लेकिन जब वे वर्तमान समय के लक्ष्मणझूला से आगे बढ़े तो उनके आगे और पीछे जाने के रास्ते रोक दिये गये। गंगा के किनारे और पहाड़ी रास्तों से अनभिज्ञ मुगल सैनिकों के पास खाने की सामग्री समाप्त होने लगी। रानी ने संदेश भिजवाया कि वह सैनिकों को जीवनदान दे सकती है लेकिन इसके लिये उन्हें अपनी नाक कटवानी होगी। सैनिकों को भी लगा कि नाक कट भी गयी तो क्या जिंदगी तो रहेगी ! मुगल सैनिकों के हथियार छीन लिए गये और आखिर में उन सभी की एक एक करके नाक काट दी गयी। कहा जाता है कि जिन सैनिकों की नाक काटी गयी उनमें सेनापति नजाबत खान भी शामिल था। वह इससे काफी शर्मिंदा था और उसने मैदानों की तरफ लौटते समय अपनी जान दे दी।