
Dhari Devi: आप चारधाम यात्रा पर जाने की सोच रहे हैं तो अगर आपने माँ भगवती माॅ धारी के दर्शन नही किये तो आप चारों धामों के फल से वंचित हो सकते हैं। आखिर क्यों कहा जाता है माँ धारी को चारों धामों की रक्षक देवी आज हम आपको बताते हैं। धारी देवी मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक पवित्र हिंदू मंदिर है। यह देवी धारी देवी को समर्पित है, जिन्हें देवी काली का अवतार माना जाता है। यह मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है, जो पवित्र नदी गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है।
यह मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में श्रीनगर के पास कलियार गांव में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यह हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित 108 शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर में देवता देवी की एक स्वयंभू मूर्ति है, जो एक पत्थर से उभरी देवी के ऊपरी आधे हिस्से के रूप में है।धारी देवी(Dhari Devi) मंदिर साल भर बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है, खासकर नवरात्रि उत्सव के दौरान, जो देवी की पूजा के लिए समर्पित है। सुरम्य गढ़वाल पहाड़ियों और बहती अलकनंदा नदी से घिरा मंदिर का शांत स्थान इसकी आध्यात्मिक आभा और प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाता है।
देवभूमी उत्तराखण्ड़, जहां कण-कण में देवी-देवताओं का वास है। यहाँ स्थित है चार धाम “गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ“। प्रत्येक साल लाखों श्रद्वालु यहाॅ पहुॅचते हैं। मान्यता है कि चारधाम की यात्रा का फल तब तक नहीं मिलता जब तक कि आपने माॅ धारी के दर्शन नहीं किये। बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग-58 पर श्रीनगर से 15 किमी दूर कलियासौड़ में स्थित है चारों धामों की रक्षक माँ धारी देवी का मंदिर।धारी देवी का मंदिर यहाॅ अलकनंदा नदी के बीचों बीच पानी के ऊपर बना हुआ है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार धारी देवी(Dhari Devi) के इस मन्दिर का इतिहास 300 हजार वर्ष पुराना है।
धारी देवी को एक संरक्षक देवता माना जाता है जो उत्तराखंड में चार धाम मंदिरों की रक्षा करती हैं। चार धाम उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में चार तीर्थ स्थलों के एक समूह को संदर्भित करता है, जिन्हें हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है। ये चार मंदिर हैं यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ।ऐसा माना जाता है कि धारी देवी चार धाम मंदिरों और पूरे क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं, विशेषकर बाढ़ से बचाती है। स्थानीय लोग देवी की सुरक्षात्मक शक्तियों में दृढ़ विश्वास रखते हैं, उन्हें क्षेत्र की संरक्षक देवता मानते हैं।