kamleshwar temple पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने इस स्थल पर 11 हजार वर्षों तक भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें विश्वमोहिनी अवतार में दर्शन दिए।देवों के देव महादेव पहले योगी माने जाते हैं, अरण्य संस्कृति के काल से ही भगवान शिव की पूजा होती आ रही है। सनातन शास्त्रों में उल्लेखित है कि भगवान शिव ब्रह्मांड को संजीवनी शक्ति प्रदान करते हैं।
शंकर मठ में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ kamleshwar temple
वे न आदि हैं और न अंत इसलिए उन्हें अनादि कहा जाता है। उत्तराखंड में भगवान शिव के कई पौराणिक मंदिर स्थित हैं, लेकिन श्रीनगर गढ़वाल में एक विशेष मंदिर है जहां भोलेनाथ ने 11 हजार वर्षों तक कठोर तप किया। इसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें विश्वमोहिनी अवतार में दर्शन दिए। कहा जाता है कि लगभग एक हजार वर्ष पूर्व जगतगुरु शंकराचार्य और देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने यहाँ मंदिर का निर्माण किया, जिसे शंकर मठ नाम से जाना जाता है। यह मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ-साथ, शालिग्राम पत्थर से बनी भगवान विष्णु की मोहिनी अवतार की मूर्ति के लिए भी प्रसिद्ध है, जो यहां की दुर्लभ और विशेष विशेषताओं को दर्शाती है।
श्रीनगर में भगवान विष्णु एकमात्र विश्वमोहिनी अवतार में दर्शन देते हैं। माना जाता है जब शंकराचार्य ने चार धाम बारह ज्योतिर्लिंग और एक रात में 360 मठों की स्थापना की उसी कालखंड में लगभग एक हजार वर्ष पूर्व शंकर मठ का निर्माण भी हुआ। इस मंदिर में शालिग्राम पत्थर से निर्मित तीन प्रमुख मूर्तियां स्थापित हैं, पहली राधा बल्लभ की, दूसरी विश्व मोहिनी अवतार की और तीसरी मां राजराजेश्वरी की मूर्ति। मान्यता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर शंकर मठ में पूजा-अर्चना के बाद कमलेश्वर महादेव मंदिर में 365 बत्तियां चढ़ाई जाती हैं। हर सावन के सोमवार, शिवरात्रि और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर की गई पूजा से भगवान शिव और भगवान विष्णु भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।
सावन के प्रत्येक सोमवार को शंकर मठ में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जाती है। आप भी दर्शन करने यहाँ जरूर जाएं। कमलेश्वर मंदिर में होने वाली पूजा निसंतान दंपतियों की सूनी गोद भरने के लिए प्रसिद्ध है। उत्तराखंड के कई मंदिर ऐसे हैं जहां संतान प्राप्ति के लिए “खड़े दीये” की पूजा की जाती है। इस पूजा को स्थानीय भाषा में “खड़रात्रि” कहा जाता है। इस दौरान संतान की इच्छुक महिलाएं अपने पति के साथ इस मंदिर में रातभर जलते दीये को हाथों में लेकर खड़ी रहती हैं। भगवान शिव की आराधना की जाती है।मंदिर के ब्राहमणों द्वारा हर निसंतान दंपति से संकल्प लिया जाता है और पूजा कराई जाती है।